रंजीत सिंह दिसाले – 1 मिलियन डॉलर Global Teacher Prize जीतने वाले पहले भारतीय, लड़कियों की शिक्षा में अद्भुत योगदान

Hindi By Anwita Kumari | 16 sec read

भारत में हमेशा से ही गुरु-शिष्य परंपरा रही है और गुरु को भगवान से ऊपर का दर्जा दिया जाता है। एक गुरु का काम बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के साथ उनका मार्गदर्शन करना और उनके लिए एक बेहतर भविष्य तैयार करना है। आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही गुणी शिक्षक रंजीत सिंह दिसाले (Ranjeet Singh Disale ) की जिन्होंने हाल ही में Global Teacher Prize जीतकर एक मिसाल कायम की है। रंजीत के बारे में जानने से पहले हम आपको बता दें कि ग्लोबल टीचर प्राइज़ क्या है।

Ranjeet Singh Disale
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क्या है ग्लोबल टीचर प्राइज़ (Global Teacher Prize)

यह अवार्ड समारोह UNESCO और लंदन की वार्की फाउनडेशन द्वारा हर साल आयोजित किया जाता है। इसका उद्देश्य किसी ऐसे शिक्षक को सम्मान और धनराशि देना है जिसका शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान रहा हो। दुनिया भर से इसमें कई शिक्षक नोमिनेट किए जाते हैं, यहाँ तक कि शिक्षक खुद को भी नोमिनेट कर सकते हैं।

निर्णायक मंडल में विश्व भर से शिक्षक, शिक्षा विशेषज्ञ, टिप्पणीकार, पत्रकार, कंपनी के निदेशक, तकनीकी उद्यमी और वैज्ञानिक शामिल होते हैं। हमारे लिए यह गर्व की बात है कि इस बार यह प्राइज़ भारत के Ranjeet Singh Disale ने जीता है। इस बार कोरोना महामारी के चलते वर्चुयल रूप में इस अवार्ड समारोह का आयोजन किया गया। इस बार 140 देशों से 12,000 शिक्षकों की एंट्री आई थी, जिसमें से रंजीत सिंह को लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए यह प्राइज़ मिला।

Ranjeet Singh Disale
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कैसे शुरू हुआ Ranjeet Singh Disale का सफर

Ranjeet Singh Disale अपनी Engineering की पढ़ाई आधी छोड़कर एक सरकारी स्कूल में टीचर बने। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में एक छोटा सा गाँव है पारितेवादी जोकि काफी साल सूखा और गरीबी की समस्याओं से घिरा रहा था। 2009 में रंजीत ने जब वहाँ के स्कूल में टीचर के रूप में कदम रखा तो इमारत को काफी बुरी हालत में पाया। स्कूल में बंधे हुए पशुओं को देखकर वे समझ गए कि यहाँ शिक्षा का क्या स्तर है।

माता-पिता बच्चों के लिए पढ़ाई को ज़रूरी न मानते हुए उन्हें स्कूल भेजना नहीं चाहते थे। पर रंजीत हार मानने वालों में से नहीं थे। उन्होंने स्कूल की इमारत का रंग-रोगन करवाया, बच्चों के घर जा-जाकर माता-पिता को मनाया, लड़कियों को विशेष रूप से शिक्षा के लिए प्रेरित किया, डिजिटल लर्निंग को एक नए मुकाम पर पहुंचाया। रंजीत का रास्ता आसान नहीं था, कदम-कदम पर चुनौतियाँ थीं लेकिन हर बार हिम्मत से रंजीत ने उन्हें पार किया।

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क्यों मिला Ranjeet Singh Disale को यह पुरस्कार

इंजीनीरिंग से जुड़ाव होने के कारण इनके दिमाग में तकनीक से संबंधित चीज़ें हमेशा चलती रहती थीं। इन्होंने बताया कि एक बार बाज़ार में QR Code स्कैन करते हुए इनके दिमाग में यह जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर ये कैसे काम करता है। क्यूआर कोड को समझने के बाद इन्होंने किताबों में यह तकनीक जोड़ दी ताकि बच्चे अपनी भाषा में कविताएँ और कहानियाँ पढ़कर समझ सकें, विडियो लैक्चर भी ले सकें। यहाँ तक कि बच्चों के लिए शिक्षा को आसान बनाने के लिए सारी किताबों का जो अँग्रेजी में थीं, उनका मातृभाषा में अनुवाद भी किया।

बच्चों को देश-विदेश की संस्कृति की जानकारी देने के लिए और उनकी भाषा पर पकड़ मजबूत बनाने के लिए रंजीत बच्चों का विदेशी छात्रों से डिजिटल मीडियम द्वारा संवाद भी करवाते हैं। उनके इस प्रोजेक्ट का नाम है लेट्स क्रॉस द बार्डर (Lets Cross The Border)। उनकी यह क्यूआर कोड किताबों की तकनीक महाराष्ट्र में तो प्रसिद्ध है ही लेकिन अब NCERT भी देशभर में इसे लागू करने का विचार कर रही है। रंजीत की इन कोशिशों के कारण ही अब सोलापुर और आसपास के क्षेत्रों में होने वाले बालिकाओं के बाल-विवाह में बड़ी कमी आई है।

पढ़ाई के स्तर को सुधारने, लड़कियों को आगे बढ़ाने और इनोवेशन के लिए ही Ranjeet Singh Disale को 10 लाख डॉलर यानि कि 7 करोड़ 40 लाख रूपए का यह ग्लोबल टीचर प्राइज़ मिला है।

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Finalists के साथ इनाम की रकम बाँटकर दिखाया एक और बड़प्पन

अवार्ड समारोह के रिज़ल्ट की घोषणा होते ही रंजीत ने कहा कि मैं इस पुरस्कार की आधी रकम ही अपने पास रखूँगा। बाकी की रकम रंजीत अपने अलावा टॉप 9 टीचर्स (Finalists) को देंगे। उनका मानना है शिक्षक हमेशा देने और बाँटने में विश्वास रखता है। हर शिक्षक अपने क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और मेहनत कर रहा है इसीलिए यह धनराशि उनके भी काम आएगी। हम सब मिलकर शिक्षा को सबके लिए बेहतर बना सकते हैं।

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