कहते हैं प्रकृति के पास इंसान की हर समस्या का समाधान है फिर वो समस्या रोग से जुड़ी हो या फिर आपदा से। पुराने समय में लोग आज की तरह सीमेंट ईंट की बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाकर नहीं रहते थे बल्कि घर बनाने के लिए मिट्टी, पत्थर और लकड़ियों का इस्तेमाल करते थे।
लकड़ियों से बना घर कई लोगों को खतरनाक और आउट ऑफ फैशन लग सकता है। लेकिन मिट्टी, पत्थर और लकड़ियों के बने घर आज के सीमेंट ईँट के बने घरों के मुकाबले आपदा से बचाने में ज्यादा सहायक होते हैं। साथ ही ये ईको-फ्रेंडली भी होते हैं।
यही वजह है की पिछले तीन दशकों से आर्किटेक्ट Neelam Manjunath बांस से बने घरों को लोगों के बीच लोकप्रिय करने का काम कर रही हैं। ताकि आने वाले समय में बांस कंस्ट्रक्शन मैटिरियल का पार्ट बन सके। नीलम मंजूनाथ के लगातार प्रयासों के कारण उन्हे बैम्बो लेडी ऑफ इंडिया (Bamboo Lady of India) भी कहा जाता है।
सालों से Bamboo के लिए अभियान
आर्किटेक्ट Neelam Manjunath बांस, मिट्टी, पत्थर और वेस्ट कंस्ट्रक्शन मैटीरियल से हैरिटेज साइट्स, आपर्टमेंट और अपना ऑफिस तक बना चुकी हैं। वो पिछले बहुत सालों से बांस को घर बनाने के लिए कंस्ट्रक्शन मैटिरियल में शामिल करने की वकालत कर रही है। जिसकी उनके पास एक नहीं कई वजह हैं। जिसमें सबसे बड़ी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है।
कंस्ट्रक्शन के कारण वातावरण में प्रदूषण तेजी से बढ़ता है, जिस वजह से दुनियाभर में लगातार ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या बढ़ रही है। ऐसे में बांस एक ऐसी लकड़ी है जिसका इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन में करके, ना केवल प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है बल्कि आपदा से भी बचा जा सकता है।
बांस के पेड़ दूसरे किसी भी पेड़ के मुकाबले 35 प्रतिशत ज्यादा ऑक्सीजन जनरेट करते हैं।
दुनिया मे बांस के पेड़ सबसे ज्यादा चीन में पाए जाते हैं। चीन के बाद भारत बांस का दूसरा सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है। ऐसे में भारत के पास एक बहुत बड़ा अवसर है की इन पेड़ों का इस्तेमाल कर कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री को नई दिशा और सोच दे सकें। जो ईको-फ्रेंडली भी हो और सुरक्षित भी हो।
Bamboo इस्तेमाल करने का आइडिया
Neelam Manjunath ने जब अपना करियर शुरु किया था तो वो भी बाकी आर्चीटेक्ट्स की तरह बांस के इस्तेमाल से अंजान थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि साल 1999 में उन्होंने पहली बार इसका इस्तेमाल किया। नीलम के अनुसार जब वो बैंगलुरु के राजभवन के प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी, उस दरौन उनके क्लाइंट ने कंस्ट्रक्शन में बांस का इस्तेमाल करने को कहा।
इस प्रोजेक्ट के दौरान उन्होंने जाना कि इस मैटीरियल में कितनी समक्षता है। उन्होंने पहचाना और समझा की बांस कैसे हमारे ट्रेडिशनल कंस्ट्रक्शन सिस्टम से जुड़ा हुआ है, लेकिन लोग अभी इसकी समक्षता को नहीं समझते। उसके बाद से ही नीलम National Mission for Bamboo Applications का हिस्सा है। वो अपने क्लाइंट्स को ही नहीं बल्कि हर किसी को बांस के इस्तेमाल के बारे में जागरुक करती हैं, ताकि लोग इसके असली महत्व को समझ सकें।
बांस के इस्तेमाल से किसानों को मिलेगा रोजगार
बांस को कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में शामिल करने से इसकी मांग तेजी से बढ़ेगी, जिससे हर किसी के मन में ये सवाल उठना भी लाजमी है कि इसके लिए बांस के पेड़ों को तेजी से काटा जाएगा। जिसे वातावरण को नुकसान हो सकता है। पर इसका जवाब भी नी Neelam Manjunath के पास है।
Neelam Manjunath बांस के पेड़ों से घर बनाने की वकालत इसलिए करती आ रही है क्योंकि वो जानती है कि बांस के पेड़ को उगने के लिए बाकी पेड़ों की तरह 30 साल का समय नहीं लगता है। बांस के पेड़ बहुत तेजी से उगते हैं। जिस वजह से किसान इनकी खेती भी आराम से कर सकते हैं और अगर बांस को कंस्ट्रक्शन इंड्स्ट्री में मैटिरियल के तौर पर शामिल कर लिया जाता है तो इसका सीधा फायदा इसकी खेतरी करने वाले किसानों को होगा।
आमतौर पर कंस्ट्रक्शन मैटीरियल के जरिए कंस्टमर का पैसा कंपनी को जाता है। लेकिन अगर वो बांस की लकड़ियों का घर बनवाता है तो उसका पैसा कंपनी से होते हुए किसानों तक पहुंचता है। ऐसे में देखा जाए तो बांस के कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में इस्तेमाल से किसानों के लिए भी रोजागर के अवसर बढ़ेंगे।
बांस के घर – एक प्राचीन कला
हालांकि ऐसा नहीं है कि बांस के घर इससे पहले चलन में नहीं थे, कई गांवों में बांस से बने घरों का चलन बरसों पुराना है। चीन जापान जैसे कई देशों में भी बांस की लकड़ी के बने घर देखने को मिलते हैं। Neelam Manjunath के अनुसार वो इस ट्रेडिशन को मैन स्ट्रीम लाना चाहती है, ताकि इस तरह के घरों की और लोग आकर्षित हो और इसकी मांग बढ़े।
पुराने जमाने में बहुत से ऐसे सिस्टम फॉलो किए जाते थे जो प्रकृति की सुरक्षा और आपदा से बचाव के लिए बहुत कारगार साबित होते थे, लेकिन इन सिस्टम को ये कहकर भुला दिया गया कि ये आउट डेटिड हैं। हम ट्रेंड फैशन और सुंदरता के पीछे अक्सर ये भुल जाते हैं कि इसका असर नेचर पर किस तरह पड़ेगा।
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