सुप्रिया दलाल – सरकारी स्कूल में टीचिंग के साथ जैविक खेती (Organic Farming) की करी शुरुवात

Mad4Farmer By Ritika Bidawat | 13 sec read

Supriya Dalal
Image – Supriya Dalal

Supriya Dalal दिल्ली में रोहिणी की रहने वाली हैं। वह दिल्ली के सरकारी स्कूल में अध्यापक का कार्य करती हैं। सन 2016 में दिल्ली सरकार ने एक ऐसी स्कीम निकाली जिसके अंतर्गत अध्यापकों को अपनी प्रोफेशनल ग्रोथ के लिए इनोवेटिव सोच रखने का मौका दिया गया। उनके लिए एक अलग प्रोजेक्ट लांच किया गया और सुप्रिया दलाल का उस में सिलेक्शन हो गया। इसमें शामिल अध्यापकों को अपने हिसाब से ऑनलाइन लेक्चर लेने और वर्कशॉप करने की छूट दी गई। इस तरह सुप्रिया दलाल के लिए आगे बढ़ने का रास्ता खुल गया था।

ऑर्गेनिक फार्मिंग / Organic Farming

इस बीच Supriya Dalal को ऑर्गेनिक फार्मिंग पर कुछ सेशन में जाने का मौका मिला। उस वर्कशॉप में उन्होंने ऑर्गेनिक फार्मिंग के बारे में बहुत कुछ जाना और सीखा। उसी सेशन से उन्हें पता चला कि जो बाहर से हम फल और सब्जियां व अन्य जरूरत की चीजें खरीद रहे हैं, उनमें बहुत अधिक जहरीले केमिकल हैं। आज जिन चीजों को हेल्थी समझकर, अपने परिवार वालो को हम खिला रहे हैं, भले ही वह हमारी नजर में पौष्टिक हो, पर वह परिवार की सेहत के साथ एक तरह का खिलवाड़ है। जिसको जानकारी के अभाव में हम किए जा रहे हैं। इस सेशन ने उनकी सोच पर बहुत असर डाला था। वह मन में सोच रही थी कि अपनी जरूरत की चीजें तो खुद उगाई ही जा सकती हैं।

उन्होंने “कम्युनिटी फार्मिंग” करने का प्लान बनाया, लेकिन कोई भी उनके साथ काम करने के लिए तैयार नहीं हुआ। खुद उनके पास खेती और किसानी करने का कोई अनुभव नहीं था परंतु सुप्रिया दलाल ने हार नहीं मानी। उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया, ऑनलाइन रिसर्च की, यूट्यूब पर ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) करने वालों के वीडियोस देखें और उनकी मुश्किलों को समझा। फिर शुरू हुआ उनके द्वारा की गई रिसर्च को कार्य रूप में अंजाम देने का कार्य।

Supriya Dalal ने की Organic Farming की शुरुवात

उन्होंने सन 2019 में अप्रैल के महीने से कराला गांव में 1 एकड़ जमीन से इस ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत कर दी। सबसे पहले उन्होंने अपनी जमीन पर सब्जियां लगाईं। पहले साल ही उन्हें अच्छा फायदा हुआ। फायदा होने का यह मतलब नहीं था कि उनके रास्ते में कोई अड़चन नहीं आई। खेती का कोई अनुभव ना होने के कारण रोज नए-न‌ए चैलेंज का सामना उन्हें करना पड़ता था। साथ में ही स्कूल के कार्य भी चल रहे थे इसलिए समय की भी कमी थी और लागत कम रखने के लिए वह मजदूर भी नहीं रख पा रही थीं।

पर एक बार जब काम शुरू हो गया तो सब्जियों को बेचने की समस्या उनके सामने नहीं आई। क्योंकि उनका जान पहचान का दायरा बड़ा था। लोगों ने झटपट सब्जियां खरीद ली और उन्हें मंडी जाने की भी आवश्यकता नहीं पड़ी। एक बार जब उनकी जान पहचान के दायरे में लोगों को उनके नए काम की जानकारी हुई तो लोग उनकी सब्जियों को खरीदने लगे। एक के बाद एक लोग जुड़ते चले गए और अधिक सब्जियों की डिमांड होने लगी जिसको वह पूरा करने में असमर्थ हो रही थीं।


फॉर्म टू होम

फॉर्म टू होम नाम से उन्होंने अपना एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया। इसमें शामिल लोगों को जिस चीज की आवश्यकता होती थी वह शेयर कर देता था और वह सामान भिजवा देती थीं। लोगो की आवश्यकता देख कर उन्हें अपने काम को बढ़ाना पड़ा। अब वह 5 एकड़ फॉर्म पर काम करने लगीं, जिसमें 17 तरह की सब्जियां लगाई जा रही हैं। और अब 10-12 जैविक खेती का काम करने वाले किसान भी उनके साथ जुड़ गए हैं क्योंकि अब अकेले काम करना उनके बस का नहीं था।

अब वह सिर्फ सब्जियां ही नहीं रसोई घर में प्रयोग आने वाली हर वस्तु सप्लाई करती हैं। अगर वह उनके खेत में नहीं होती तो वह उसे दूसरे किसानों से लाती हैं और वह अपने कस्टमर तक पहुंचाती हैं परंतु उसमें भी प्रोडक्ट की गुणवत्ता को परखा जरूर जाता है। वह हिमाचल प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश के किसानों से आम, अमरूद, केला जैसे कई फलों को खरीद रही हैं लेकिन वह यह पता करते हैं कि उनके द्वारा ऑर्गेनिक खेती के मापदंडों को पूरा किया जा रहा है कि नहीं ताकि उनके द्वारा सप्लाई किए गए प्रोडक्ट की गुणवत्ता में कमी ना आए।

farm to home

प्रोसेसिंग और पैकिंग

प्रोसेसिंग से पैकिंग तक का काम करने के लिए 7 लोगों की एक टीम को नौकरी पर रखा गया है। अपने कस्टमर्स को उन्होंने ऑनलाइन पेमेंट की सुविधा भी दी हुई है और यह सब कार्य एक आईटी पेशेवर की देखरेख में होता है। उनके व्हाट्सएप ग्रुप में 300 से अधिक लोग जुड़े हुए हैं और उसमें से भी 100 लोग उनके रेगुलर कस्टमर हैं। इतने कम समय में इतनी सफलता पा लेना एक सपना सा लगता है, परंतु इसके पीछे छिपी हुई है उनकी अथक मेहनत, परिश्रम, लगन और कभी ना हार मानने का जज्बा, जिसकी वजह से खेती का अनुभव ना होने पर भी वह इस राह पर चल निकली।

उन्होंने सब कुछ अपने आप ऑनलाइन सीखा। शुरुआत में तो उन्हें भी विरोध का सामना करना पड़ा था क्योंकि घरवालों ने यह कहकर विरोध किया कि ऑर्गेनिक प्रोडक्ट तो बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं, हम उन्हें खरीद भी तो सकते हैं खुद करने की क्या आवश्यकता है पर वह अपने परिवार के लिए स्वयं उगाना चाहती थीं। एक बार जब फिर काम शुरू कर दिया तो उनके पति ने भी उनका बहुत सहयोग किया। जब वह काम के सिलसिले में बाहर रहती थी तो है तब वह बच्चों का और  परिवार का ध्यान रखते थे।

Supriya Dalal
Image – Supriya Dalal

Supriya Dalal का फ्यूचर विज़न

सुप्रिया आने वाले समय में “एग्रो टूरिज्म” को लेकर काम करना चाहती हैं। वह एक ऐसा ड्रीम फॉर्म बनाना चाहती हैं जहां फलो, सब्जियों, अनाज की खेती के साथ एग्रो टूरिज्म को ध्यान में रखते हुए विकसित किया जाएगा ताकि लोग जब वहां आए तो अपनी छुट्टियां बिताने के साथ-साथ बच्चे और बड़े ऐसे अनुभव से परिचित हो सकें जिसे वह शहरों में नहीं देख पाते हैं।

ऑर्गेनिक खेती के लिए सुझाव

जो लोग ऑर्गेनिक खेती की दिशा में काम करना चाहते हैं उनके लिए उनके सुझाव है कि वह जब इस पर काम शुरू करें तो एकदम से  

(1) लाभ की अपेक्षा ना करें।

2) ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से सिंचाई करें जिससे पानी की बचत होगी।

3) कीटनाशकों के लिए नीम व गोमूत्र का प्रयोग करें।

4)  देसी गाय के गोबर, गोमूत्र आदि से ही खाद का निर्माण करें।

वह चाहती हैं कि अधिक से अधिक लोग ऑर्गेनिक खेती करना शुरू करें ताकि अधिक से अधिक लोग रसायनिक खाद मिले भोजन से बच सकें। लोगों को जैविक खाद द्वारा उगाए हुए फल, सब्जियां और दूध आदि प्राप्त हो सके।

Image – Supriya Dalal

अगर आपको Supriya Dalal कि स्टोरी पसंद आयी तो आपको सोनिया सिंगल और कृष्णा यादव की स्टोरीज जरूर पड़नी चाइये।

इस जैसे और प्रेरणादायक लेख पढ़ने के लिए आप हमें Facebook और LinkedIn पे follow कर सकते हैं।

अगर आप किसी भी प्रेरणात्मक कहानी के बारे में जानते है, और आप चाहते है की हम उसके बारे में mad4india.com पर लिखे। ऐसे जानकारी शेयर करने के लिए आप हमें  Facebook  या  LinkedIn  पे संपर्क कर सकते है। वो प्रेरणात्मक कहानी किसी भी व्यक्ति, कंपनी, नए आईडिया या सोशल पहल के बारे में हो सकती है।

Trending Posts

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.