कभी स्कूल ना जाने वाली कृष्णा यादव ने अचार बनाकर खड़ी कर दी करोड़ो की कंपनी। जानिए कैसे….

Mad4Her By Prashansa Soni | 9 sec read

Different Products By Sri Krishna Pickles
Different Products By Sri Krishna Pickles

आज भी एक आम भारतीय महिला अपने घर की दहलीज को लांघकर बाहर आने की हिम्मत नहीं जुटा पाती।परंतु कृष्णा यादव (Krishna Yadav) एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने समाज की रूढ़िवादी सोच की परवाह ना करते हुए, अपना खुद का अचार बनाने का व्यवसाय खड़ा कर दिया और आज वह दूसरी महिलाओं को प्रेरणा दे रही हैं। यह कृष्णा यादव बुलंदशहर की रहने वाली हैं जो कि आज 5 करोड़ की चार चार कंपनियों की मालकिन हैं और उन्होंने 100 से अधिक महिलाओं को रोजगार भी प्रदान किया है। परंतु इस मुकाम तक पहुंचने का सफर कभी भी उनके लिए आसान नहीं रहा।

कृष्णा यादव के पति का बुलंदशहर में ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय था। बिजनेस में घाटा हो जाने के कारण घर के हालात इतने खराब हो गए कि उन्हें अपना घर भी बेचना पड़ा। उनके पति गोवर्धन  यादव आर्थिक के साथ-साथ मानसिक परेशानियों का भी सामना कर रहे थे। 1995-96 में उनका परिवार अपने निराशाजनक दौर से गुजर रहा था। लेकिन कृष्णा यादव के मजबूत इरादे व बुलंद हौसले ही थे जिन के कारण उनका परिवार इस संकट से बाहर निकल सका। उन्होंने बुलंदशहर छोड़ कर दिल्ली आने का फैसला किया लेकिन दिल्ली जाने के भी उनके पास पैसे नहीं बचे थे। उन्होंने किसी से ₹500 उधार लेकर अपने पति को दिल्ली भेजा। परंतु उन्हें दिल्ली में कोई नौकरी नहीं मिली। कुछ समय बाद वह भी बच्चों को लेकर दिल्ली में पति के पास आ गई।

Image – Krishna Yadav
Image source – Twitter

जब कोई काम नहीं मिला तो उन्होंने कमांडेंट बी एस त्यागी के खानपुर के फार्महाउस की देखरेख का काम शुरू किया। उस फार्महाउस में बेल और करौंदे के बगीचे लगाए गए थे। ज्यादा मांग नहीं होने के कारण मंडी में इन फलों की कीमत कुछ ज्यादा नहीं मिलती थी। इसलिए कृषि विज्ञान केन्द्र, उजवा के वैज्ञानिकों ने उन्हें फूड प्रोसेसिंग का रास्ता सुझाया। इसी क्रम में श्रीमती कृष्णा यादव ने उजवा के कृषि विज्ञान केंद्र से 3 महीने का फूड प्रोसेसिंग कोर्स किया। इस ट्रेनिंग के बाद उन्होंने सौ किलो करौंदे और पांच किलो मिर्च का अचार बेचने के लिए डाला और इस में केवल 3000 ₹ का खर्च आया, जिसे बेचकर उन्हें ₹5250 का मुनाफा हुआ।

Some Types Of Pickles By Sri Krishna Pickles
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परंतु संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ था। जब उन्होंने करौंदा कैंडी बनाई तो उस कैंडी में फफूंद लग गयी और सब बर्बाद हो गया। इसके बाद उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से मशवरा लेकर अपने उत्पाद को बेहतरीन बनाने के लिए उस की संरक्षण प्रक्रिया पर अधिक ध्यान दिया। नतीजा यह हुआ कि एक बेहतर प्रोडक्ट निकल कर सामने आया। उनके बनाए अचारों, मुरब्बों, कैंडी को बेचने का काम उनके पति करते थे, परंतु कृष्णा यादव के बनाए उत्पादों को बेचने के लिए उनके पति के पास कोई दुकान नहीं थी, इसलिए वे उसी क्षेत्र में सड़क के किनारे ठेलने से चलने वाली रेहड़ी लगा कर सब चीजें बेचने लगे। करौंदे के फलों से बनी कैंडी उस इलाके के लिए नई चीज थी जिसको लोगों ने बहुत पसंद किया और वह बहुत लाभ देने वाला प्रोडक्ट बन गया था। इसकी सफलता ने उनके अंदर बेहद सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया। और फिर वह निरंतर आगे ही बढ़ती रहीं।

शुरूआत में वह केवल अचार और कैंडी ही बनाती थीं पर धीरे धीरे मांग बढ़ने पर आज वह 87 प्रकार के प्रोडक्ट तैयार करती हैं जिनमें अचार, चटनी, मुरब्बा, कैंडी आदि सभी सम्मिलित हैं। आज के समय में उनकी फैक्ट्री में करीब करीब 500 क्विंटल फलों और सब्जियों की प्रोसेसिंग होती है। उनके इस अचार व्यवसाय ने सौ से अधिक लोगों को काम करने का अवसर दिया है। सन् 2000 में उन्होंने इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट (IARI) में चलने वाले “पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी” के कोर्स का प्रशिक्षण लिया, जिसमें उन्होंने बगैर केमिकल प्रिजर्वेटिव के प्रयोग किए हुए ड्रिंक्स तैयार करना सीखा, जो कि फलों से बनाएं जा सकें। इसके बाद इन्होंने IARI के साथ जामुन, लीची, आम और स्ट्रॉबेरी आदि के पूसा ड्रिंक्स बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस प्रकार खाली हाथ दिल्ली आने से लेकर 4 करोड़ सालाना टर्नओवर वाले अचार व्यवसाय को स्थापित करने में उन्होंने एक रोलर कोस्टर वाला रास्ता तय किया था।

धीरे धीरे कृष्णा यादव के व्यवसाय को सरकार में भी पहचान मिली।

1) सितंबर 2013 में वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने उन्हें किसान सम्मान के रूप में ₹51000 का चैक भेंट किया था।

2) सन् 2014 में हरियाणा राज्य सरकार ने कृष्णा यादव को राज्य की प्रथम चैंपियन किसान महिला अवार्ड से सम्मानित किया था।

3) 8 मार्च सन् 2016 को भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने उन्हें नारी शक्ति सम्मान 2015 के लिए चुना था।

4) इसके अलावा सन 2010 में राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने भी उन की प्रशंसा की थी जब एक कार्यक्रम के अंतर्गत वह कृष्णा यादव के शीर्ष पर पहुंचने की कथा सुन रहीं थीं।

चाहे कृष्णा यादव स्वयं पढ़ाई करने के लिए स्कूल ना जा पाई हो मगर आज दिल्ली के स्कूलों में उन्हें खासतौर पर बच्चों को लेक्चर देने के लिए बुलाया जाता है। अपना नाम तक लिखना उन्होंने अपने बच्चों से सीखा था लेकिन उनकी मेहनत, लगन और मजबूत इरादों ने उनके नाम को राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया था।

अगर आपको कृष्णा यादव की स्टोरी पसंद आयी तो आपको मेघना बाफना और दीपिका म्हात्रे की स्टोरीज जरूर पड़नी चाइये।

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