जिंदगी में कामयाब वही होता है जो हर मुसीबत के लिए तैयार रहता है। Nappinnai कंपनी के फाउंडर Naidhroven पर ये कहावत पूरी तरह लागू होती है। Naidhroven जन्म से ही Muscular Dystrophy (माँसपेशयीयों की बीमारी) नाम की बिमारी से पीड़ित हैं। इसलिए कहीं ना कहीं उनका परिवार उनकी इस Disability के लिए पहले से ही तैयार था।
लेकिन Naidhroven किसी के सहारे अपनी जिंदगी नहीं काटना चाहते थे और उनके इसी जज्बे ने उन्हें हिम्मत दी एक ऐसा स्टार्टअप खोलने की, जिसने उनकी ही नहीं कई लोगों की जिंदगी बदल दी।
26 साल की उम्र में Muscular Dystrophy का असली असर
Naidhroven के पिता एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर थे जिस वजह से उनका भी झुकाव इंजीनियरिंग की तरफ था। लेकिन अपने टीचर्स के कहने पर Naidhroven ने करियर ऑप्शन के तौर पर कॉमर्स को चुना और इसी फील्ड में अपनी आगे की पढ़ाई की। टीचर्स का मानना था कि अपनी बिमारी की वजह से वो साइंस लैब में काम नहीं कर सकते, जिस वजह उनके लिए साइंस की जगह कॉमर्स ही लेना बेहतर होगा।
Naidhroven ने भी मान लिया था कि वो इंजीनियर नहीं बन पाएंगे। उनकी बिमारी के लक्षण धीरे-धीरे दिखने लगे थे और वो भी अपने आप को अपनी बिमारी के लिए तैयार कर रहे थे। Naidhroven को पता था कि 30 के बाद वो व्हीलचेयर पर हो सकते हैं, लेकिन वो अपनी बिमारी का असर अपने सपनों पर नहीं पड़ने देना चाहते थे।
MBA के दौरान उनकी हालात ज्यादा खराब हो गई, उस समय उनकी उम्र सिर्फ 26 साल थी। उनका हिप डिसलॉकेट हो गया और उनके टखने पर भी इसका बहुत बुरा असर हुआ। वो अब पहले की तरह चल फिर नहीं सकते थे। Naidhroven के अनुसार उनके पास सर्जरी का ऑप्शन था, लेकिन सर्जरी के पास और फेल होने के चासंस बराबर थे और अगर सर्जरी फेल होती तो उनकी हालत और भी बुरी हो सकती थी। जिस वजह से उन्होंने सर्जरी नहीं कराई।
Disability के कारण कंपनियों ने किया रिजेक्ट
ये वक्त Naidhroven के लिए बहुत बुरा था, पर उन्होंने उम्मीद नहीं खोई। उन्होंने कई बड़ी कंपनियों में जॉब के लिए एप्लाई किया। परन्तु विकलांग होने के कारण उन्हें हर जगह से रिजेक्ट कर दिया जाता था। जिंदगी के इतने मुश्किल वक्त में भी उन्होंने हिम्मत नहीं खोई।
Naidhroven का कहना है कि जॉब ना मिलना कहीं न कहीं इशारा था सपनों को पूरा करने का। अगर उन्हें नौकरी मिल जाती तो शायद वो कभी अपना स्टार्टअप नहीं खोल पाते।
Naidhroven के पिता ने उनके लिए एक Compact Scooter तैयार किया, ताकि वो बिना किसी के सहारे के चल पाए। ये वो पल था जब Naidhroven को अपने स्टार्टअप के लिए एक बेहतरीन आइडिया मिला। उन्होंने इस स्कूटर को लोगों के लिए सड़क पर उतारने का फैसला किया। जिसके लिए उन्होंने पहले 2 साल तक फ्रीलांसर के तौर पर अलग-लग सेक्टर की कंपनियों के लिए काम किया।
बिजनेस शुरु करने से पहले वो जर्मनी के accelerator programme को भी ज्वाइन करना चाहते थे, लेकिन कुछ कारणों से इस प्रपोजल को रिजेक्ट कर दिया गया। जिसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि वो अपना स्टार्टअप शुरु करेंगे।
सरकार ने की स्टार्टअप खोलने में मदद
फ्रीलांस काम करने से Naidhroven को अपने स्टार्टअप के लिए अनभुव मिल गया था, लेकिन किसी भी बिजनेस को शुरु करने के लिए फंड की जरुरत होती है। बिजनेस के लिए फंड जुटाने में तमिलनाडु सरकार की Prime Minister Employment Generation Scheme उनके काम आई।
साल 2016 में Naidhroven ने Nappinnai नाम से अपनी स्टार्टअप कंपनी खोली। ये Compact Scooter खासतौर पर उन लोगों के लिए डिजाइन किए गए, जिन्हें किसी बिमारी या एक्सीडेंट के कारण चलने में समस्या होती है। Nappinnai के लिए तमिलनाडु सरकार ने उन्हें 10 लाख रुपये का फंड दिया और 11 लाख रुपये की मदद उनके परिवार और दोस्तों ने की।
कमी शरीर में नहीं दिमाग में होती है – Naidhroven
अपनी कामयाबी को लेकर Naidhroven का कहना है कि दुनिया में विकलांग लोगों को अक्सर एक अच्छी जॉब के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि वो अपने भविष्य को सिक्योर कर सकें। लेकिन वो इस मान्यता पर यकीन नहीं रखते हैं। उनके अनुसार उन्होंने ये स्टेप लिया ताकि वो लोगों को समझा सकें कमी उनके शरीर में नहीं बल्कि लोगों के दिमाग में है।
Nappinnai के वाहन इको-फ्रेंडली हैं और साथ ही लो-कोस्ट भी हैं ताकि हर वर्ग के लोग आसानी से इन्हें खरीद पाए। एक मॉडल को तैयार करने में कम से कम 8 से 10 हजार का खर्च आता है।
Naidhroven चाहते तो कोई ना कोई नौकरी करके अपनी जिंदगी आराम से व्यतीत कर सकते थे, लेकिन अगर वो ये रास्ता चुनते तो लाखों लोगों के लिए प्रेरणा नहीं बन पाते। हादसे अक्सर जिंदगी को बदल देते हैं पर उन हादसों से उभर कर दूसरों के लिए प्रेरणा कैसे बनते हैं ये हम पर निर्भर करता है।
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