किराए के कमरे से वेफर्स की कंपनी तक का सफर…. बुधानी ब्रदर्स की ये कहानी आपको प्रेरणा से भर देगी

By Mad4India | 8 sec read

The Budhani Brothers Waferwala Family
The Budhani Brothers Waferwala Family at their shop in Camp. Image SourceFacebook

कहते हैं अगर आपके दिल में जुनून हो और आपके मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो आप हर मुश्किल को आसान कर सकते हैं। ऐसा ही कुछ करके दिखलाया है गुजरात के रहने वाले बुधानी ब्रदर्स ने। इनकी कहानी आपको प्रेरणा से भर देगी। ये 3 भाई भले ही आज एक अच्छी-खासी कंपनी के मालिक हैं पर इनका बिता हुआ कल संघर्षों से भरा था ।

हर बच्चे का सपना होता है कि वो अपने मां-पिता की बुढ़ापे में सेवा करे लेकिन इन्हें ये भी नसीब ना हुआ। वेफर्स बनाने वाली कंपनी के मालिकों को अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने घर को छोड़ना पड़ा। ये लोग भुज से पुणे शिफ्ट हो गए। यहां वो बस थोड़े से पैसों के साथ अपनी किस्मत को आजमाने के लिए आए थे। पुणे की एमजी रोड पर माधवजी बुधानी ने एक 100 वर्गफुट का किराए का मकान लिया। यहीं पर इन्हें आईडिया आया वेफर्स बनाने का। इस काम के लिए इन्होंने एक छोटी स्टोव, फ्राइंग पैन, हैंड पिलर और आलू खरीदे और यहीं से शुरू हुआ चिप्स यानी वेफर्स बनाने का सफर।

वो तारीख थी 30 अगस्त, 1955 की जब इन्होंने अपना वेफर्स का बिजनेस स्टार्ट किया। अपने भाइयों मोतीलाल और मंगलदास की मदद भी माधव जी ने इस कारोबार के लिए मांगी। इसके बाद इन 3 भाइयों की एकता ने वो करके दिखाया कि दुनिया देखती रह गयी। इन्होंने वेफर्स बनाकर साइकिल की मदद से उन्हें बेचना शुरू किया। इनके काम में ईमानदारी थी लिहाजा इनका काम चल पड़ा। अच्छी कमाई होने लगी। गुजरते वक्त के साथ तीनों भाई शादी के बंधन में बंध गए।

शादी करने के बाद इनका बिजनेस और अच्छा चल पड़ा। ऐसा इसलिए क्योंकि इनकी पत्नियों ने इनकी खूब मदद की। इनका कारोबार आपसी तालमेल से लगातार चलता रहा। अब वेफर्स को बनाने का आधा से ज्यादा जिम्मा इनकी पत्नियों के ऊपर था। अपने कारोबार को बढ़ता देख इन्होंने इसे और बढ़ाने के बारे में सोचा। फिर इन्होंने बड़े बड़े बर्तन अपने पास इकट्ठा किए ताकि ज्यादा वेफर्स बन सके।

Budhani Bros Waferwala
Budhani Bros Waferwala. Image Source – BudhaniBros

आलू वेफर्स बाजार में खूब चला। अब इन्होंने आलू वेफर्स के ही और प्रोडक्ट बनाने शुरू किए जिनमें आलू चिवड़ा (मिश्रण), आलू सल्ली (लाठी), नमकीन मूंगफली और नमकीन काजू शामिल थे। 1970 तक आते-आते इनका कारोबार और मजबूत हो चुका था। अब ऐसे में इन्होंने वेफर्स को बनाने के लिए गैस फ्रायर ले लिया। वेफर्स की पैकिंग भी होने लगी। पैकिंग के साथ रॉयल डिलाइट नाम का ब्रांड इन्होंने तैयार किया। और ये अपना चिप्स इसी नाम से तमाम दुकानों में भेजते जहां से लोग ये चिप्स खरीदते थे। 1972 में बुधानी ब्रदर्स ने अपना आउटलेट भी खोल लिया। ये भले ही छोटा था लेकिन यहां बिकने वाला सामान अच्छी क्वालिटी का था। 1974 तक आते-आते तक सब कुछ इन्होंने सेटल कर लिया।

फिर कारोबार में दूसरी पीढ़ी आयी। इस दूसरी पीढ़ी में शामिल थे अरविंद, दिलीप, सुरेश, किशोर और परेश। ये भले ही युवा थे लेकिन इन्हें पता था कि अपने बाप-दादाओं की मेहनत बेकार नहीं करनी है। इसलिए इन्होंने क्वालिटी से कोई भी समझौता नहीं किया। अरविंद विदेशों की टेक्नोलॉजी को समझ कर आये थे। क्योंकि इन्हें देश से बाहर जाने का मौका मिला। और इसी विदेश की तकनीक का इस्तेमाल इन्होंने यहां किया। 1988 तक आते-आते इन्होंने स्टील फ्रायर लिया। जिसमें की पहले के मुकाबले ज्यादा सुविधाएं थीं। ये हिट प्रूफ, साउंड प्रूफ और टेम्प्रेचर को मेंटेन करने वाला फ्रायर था। इनका कारोबार चलता ही गया।

Mr. Rishabh Budhani, The 3rd Generation Entrepreneur
Mr. Rishabh Budhani, The 3rd Generation Entrepreneur. Image Source – Instagram

अरविंद ने किसी इंटरव्यू में बताया है कि सन 1990 में माइक्रोसॉफ्ट न्यूयॉर्क से एक शख्स हमारे काम को देखने आया। वो चिप्स के स्वाद का दीवाना था पर जब उसने हमारा एडवांस सिस्टम देखा तो वो हैरान रह गया।

2004 में इन्होंने अपनी एक कंपनी बेहतर तरीके से स्थापित की। आज के वक्त में ये वेफर्स की दुनिया में बड़ा नाम हैं। इनके वेफर्स के दीवाने पूरे भारत ही नहीं बल्कि विश्व में हैं। इन्होंने क्वालिटी से कभी समझौता नहीं किया। अपने सामान के दाम भी बिल्कुल वाजिब रखे। हाइजीन का खास तौर पर ध्यान रखा। यही कारण था कि लोगों का विश्वास इनपर बढ़ता चला गया।

कहते हैं ना कि पैसा ही सबकुछ नहीं होता। ये बात इन लोगों ने सच करके दिखाई। एक छोटे से कमरे से कंपनी तक का सफर आसान नहीं था। पर इन भाइयों ने अपनी मेहनत, लगन और इम्मानदारी से सफर को आसान बनाया। इनके संघर्ष से हर कोई बहुत कुछ सीख सकता है।

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